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कविता

हमारी घाटी

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी


हमारी घाटी हमें वापिस कर दो
वापस कर दो हमारी घाटी
तुम नहीं समझ सकते
ओस में भीगी चट्टानों का दर्द
न उस संगीत को
जब दूधिया चाँदनी में धुल जाता है जंगल
तारों भरी रात में फूल झरते हैं
और काँपती हवाओं
हिलती वनस्पतियों के बीच
हम एक-दूसरे के लिए
भोर तक प्रतीक्षा करते हैं।

 


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